आज फ़ैज़ साहब की 37 वीं बरसी है। उर्दू शाइरी में जहाँ उनका नाम इस दर्जा बुलंद है, तो उनकी ज़िंदगी के अहवाल से बहुत कम लोग आश्ना हैं। ख़ुसूसी तौर पर उनकी इब्तिदाई ज़िंदगी के बारे में कोई गुफ़्तुगू होते हुए मैंने नहीं देखी। मज़कूरा बाला मौज़ूअ पर फ़ैज़ साहब का एक इंटरव्यू मिर्ज़ा ज़फ़र-उल-हसन के साथ याद आता है जिसमें फ़ैज़ साहब ने अपने बचपन के बारे में एक तवील गुफ़्तगू की है।